गीतिका
तितलियाँ
संजीव 'सलिल'
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यादों की बारात तितलियाँ.
कुदरत की सौगात तितलियाँ..
बिरले जिनके कद्रदान हैं.
दर्द भरे नग्मात तितलियाँ..
नाच रहीं हैं ये बिटियों सी
शोख-जवां ज़ज्बात तितलियाँ..
बद से बदतर होते जाते.
जो, हैं वे हालात तितलियाँ..
कली-कली का रस लेती पर
करें न धोखा-घात तितलियाँ..
हिल-मिल रहतीं नहीं जानतीं
क्या हैं शाह औ' मात तितलियाँ..
'सलिल' भरोसा कर ले इन पर
हुईं न आदम-जात तितलियाँ..
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हिंदी गीति काव्य सलिला का प्रवाह लोक-रंजन के साथ भवः-भय भंजन को इष्ट मानकर सत्-शिव-सुंदर के माध्यम से सत्-चित्त-आनंद की प्राप्ति के लिए हुआ है. निराकार अनादि-अनंत अक्षर ब्रम्ह की शब्द शक्ति भाषा के रूप में साकार होकर संवेदनाओं की अभिव्यक्ति कराकर नश्वर को शाश्वत से संयुक्त करती है. भारतीय मनीषा इसीलिये साहित्य का हेतु 'सर्व जन हिताय, सर्व जन सुखाय' मानती है. हिन्दी गीति काव्य सलिला 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' अर्थात सभी सुखी हों के आप्त वाक्य को शब्द रूप देकर अखंड आनंद का सागर बन सकी है.
नन्हे बिटवा भाई
जवाब देंहटाएंचिरंजीव भवः
तितलियां
पढ़ी अच्छी लगी समझने के लिए दूसरी बार पढूंगी
आशीर्वाद के साथ आपकी
गुड्डोदादी